चलिए शाहरुख़ भाई, आपको अब कुछ तो समझ में आ गया होगा? ये क्रिकेट का मैदान है, यहाँ सब कुछ प्रचार और रंगीनियाँ दिखाने का कमाल नहीं है। आपका सारे समय इधर से उधर घूम घूम कर प्रचार करना, मॉडल के साथ नाच नाच कर 20-20 मैचों को फिल्मी समझना, लग रहा था जैसे की जीत पब्लिक के सहारे मिलेगी। यदि ऐसा ही होता तो हम किसी भी वर्ल्ड कप में नहीं हारते क्योंकि एक आप ही नहीं, इस देश में तमाम ऐसे हैं जो आप से ज्यादा भीड़ खीचने की ताकत रखते हैं।
आइ० पी० एल० की सुंदर सी, डरावनी सी, खिसियानी सी हार के बाद तो आपकी अकल के दरवाजे तो खुल ही गए होंगे? वैसे आपके साथ-साथ आपके अंधे भक्तों के दिमाग में लगा ताला भी खुला होगा जो आपको सफलता का दूसरा नाम मानते थे। भैये मीडिया के सहारे, पैसे की ताकत दिखा कर, अंधाधुंध पैसा बाँट कर फिल्मों को तो हिट बनाया जा सकता है पर खेल को नहीं।
खेल के सहारे व्यापार करने की सोच कर आपका यहाँ आना घाटे का सौदा ही रहा, यदि खेल या देश से इतना ही प्रेम है तो अपनी फ़िल्म की तरह हॉकी की तरफ़ ध्यान लगा दो कुछ भला जरूर होगा, कुछ हॉकी का, कुछ आपका। शायद बात समझ नहीं आयेगी, आख़िर सवाल व्यापार का है।